सीने में राज़-ए-इश्क़ छुपाया न जाएगा ये आग वो है जिस को दबाया न जाएगा सुन लीजिए कि है अभी आग़ाज़-ए-आशिक़ी फिर हम से अपना हाल सुनाया न जाएगा अब सुल्ह-ओ-आशती के ज़माने गुज़र गए अब दोस्ती का हाथ बढ़ाया न जाएगा हम आह तक भी ला न सकेंगे ज़बान पर वो रूठ जाएँगे तो मनाया न जाएगा वो दूर हैं तो दिल को है इक इज़्तिराब सा वो आएँगे तो आप में आया न जाएगा