या-रब कहाँ गया है वो सर्व-ए-शोख़-रा'ना है चोब-ए-ख़ुश्क जिस बिन मेरी नज़र में तूबा दीदार दे शिताबी जलने की ताब नीं है इस हिज्र की अगन सीं दोज़ख़ की आग औला तौक़-ए-गुलू-ए-दिल है ज़ुल्फ़-ए-सनम का हर ख़म मशहूर ये मसल है यक सर हज़ार सौदा है ख़त्म यार-ए-जानी तेरे दहन की तंगी कहने की बात नीं है बारीक है मुअम्मा ऐ गुल-बदन नज़र कर दाग़-ए-जिगर कूँ मेरे गर आरज़ू है तुझ कूँ गुलज़ार का तमाशा मस्कन हुआ है मेरा जब सीं तिरी गली में ऐ गुल-एज़ार तब सीं जन्नत की नीं तमन्ना है ऐ 'सिराज' हर शब महताब-रू के ग़म में आँसू का मेरे झमका ज्यूँ ख़ोशा-ए-सुरय्या