तअ'ल्लुक़ तोड़ कर उस की गली से कभी मैं जुड़ न पाया ज़िंदगी से ख़ुदा का आदमी को डर कहाँ अब वो घबराता है केवल आदमी से मिरी ये तिश्नगी शायद बुझेगी किसी मेरी ही जैसी तिश्नगी से बहुत चुभता है ये मेरी अना को तुम्हारा बात करना हर किसी से ख़सारे को ख़सारे से भरूँगा निकालूँगा उजाला तीरगी से तुम्हें ऐ दोस्तो मैं जानता हूँ सुकूँ मिलता है मेरी बेकली से हवाओं में कहाँ ये दम था 'फ़ैसल' दिया मेरा बुझा है बुज़दिली से