सिसक रही है अँधेरों में शाम-ए-तन्हाई कोई चराग़ जलाओ ब-नाम-ए-तन्हाई सदा रहे यूँही आबाद शहर-ए-शीशागराँ कि मेरे नाम किया वक़्फ़ जाम-ए-तन्हाई रविश रविश जो हैं टूटे हुए कुछ आईने क़दम क़दम है निशान-ए-ख़िराम-ए-तन्हाई ये किस ख़याल से रौशन है रू-ए-शाम-ए-फ़िराक़ ये कैसी लौ से दमकता है बाम-ए-तन्हाई सजाई होंटों पे दीवार-ओ-दर की ख़ामोशी कुछ इस तरह भी किया एहतिमाम-ए-तन्हाई लिखी हैं पलकों से बे-हर्फ़ भी मुनाजातें कमाल-ए-फ़न से किया एहतिराम-ए-तन्हाई चमकते दर्द से 'अकरम' सहीफ़ा-ए-दिल पर उभर रहा है मुसलसल कलाम-ए-तन्हाई