सितम भी करता है उस का सिला भी देता है कि मेरे हाल पे वो मुस्कुरा भी देता है शनावरों को उसी ने डुबो दिया शायद जो डूबतों को किनारे लगा भी देता है यही सुकूत यही दश्त-ए-जाँ का सन्नाटा जो सुनना चाहे कोई तो सदा भी देता है अजीब कूचा-ए-क़ातिल की रस्म है कि यहाँ जो क़त्ल करता है वो ख़ूँ-बहा भी देता है वो कौन है कि जलाता है दिल में शम-ए-उमीद फिर अपने हाथ से उस को बुझा भी देता है वो कौन है कि बनाता है नक़्श पानी पर तो पत्थरों की लकीरें मिटा भी देता है वो कौन है कि जो बनता है राह में दीवार और उस के बा'द नई रह दिखा भी देता है वो कौन है कि दिखाता है रंग रंग के ख़्वाब अँधेरी रातों में लेकिन जगा भी देता है वो कौन है कि ग़मों से नवाज़ता है मुझे ग़मों को सहने का फिर हौसला भी देता है मुझी से कोई छुपाता है राज़-ए-ग़म सर-ए-शाम मुझी को आख़िर-ए-शब फिर बता भी देता है