सितम है अपना किसी ने बना के लूट लिया मिरी नज़र से नज़र को मिला के लूट लिया हरीम-ए-नाज़ के पर्दे में जो निहाँ था कभी उसी ने शोख़ अदाएँ दिखा के लूट लिया रहा न होश मुझे उस के बा'द फिर कुछ भी की जब किसी ने मुक़ाबिल में आ के लूट लिया अजीब नाज़ से उल्टी नक़ाब-ए-रुख़ इस ने की मुझ को रूह-ए-मुनव्वर दिखा के लूट लिया लो हम भी आज तो 'ताबाँ' फ़रेब खा बैठे किसी ने यूँही मोहब्बत से जा के लूट लिया