सितम का ज़िक्र क्या हम को सितम अच्छे नहीं लगते ये झूटा प्यार ये झूटे भरम अच्छे नहीं लगते मसर्रत की फ़रावानी उन्हें क्या रास आएगी जिन्हें ऐ ज़िंदगानी तेरे ग़म अच्छे नहीं लगते हमारे साथ चलना है तो अज़्म-ओ-हौसला रखना वफ़ा की राह में बहके क़दम अच्छे नहीं लगते किसी भी क़ौम के वो नौजवाँ हों उन के हाथों में क़लम तो अच्छे लगते हैं ये बम अच्छे नहीं लगते ख़मोशी इक हक़ीक़त है मगर क्या कीजिए इस को हमें महफ़िल में पत्थर के सनम अच्छे नहीं लगते उन्हें तारीख़ के औराक़ में मुनकिर लिखा जाए जो कहते हैं हमें दैर-ओ-हरम अच्छे नहीं लगते जो कल तक ख़ुद पे नाज़ाँ थे हमारे हम-नशीं हो कर उन्हीं लोगों को अब 'बेदार' हम अच्छे नहीं लगते