हमारे दिल में किसी गुल-बदन के प्यार के फूल कि दस्तरस में नहीं हैं ये देवदार के फूल तरस रहे हैं किसी लम्स-ए-मो'तबर के लिए मिरे ख़याल की शाख़ों पे इंतिज़ार के फूल किसी से कोई तवक़्क़ो' का सिलसिला ही नहीं बड़े कमाल के होते हैं ख़ार-ज़ार के फूल कोई भी तुझ पे मिरी जाँ यक़ीन क्यों न करे तिरे कलाम से झड़ते हैं ए'तिबार के फूल उन्हें बहार के आने का इंतिज़ार कहाँ पिघलती बर्फ़ में खिलते हैं कोहसार के फूल उन्हें क़ुबूल नहीं आफ़्ताब की दावत जलेगा दीप तो फूलेंगे हर-सिंगार के फूल