सितम सा कोई सितम है तिरा पनाह तिरी पड़ी है चार तरफ़ इक तराह तराह तिरी तरीक़ पर जो नहीं तू है रह न मेरे साथ वो राह मेरी है ऐ जान सुन ये राह तिरी दिला तू इश्क़ में हर लहज़ा अश्क-ए-ख़ूनीं रो कि सुर्ख़-रूई इसी से है रू-सियाह तिरी मैं इतना बाज़ी-ए-उल्फ़त में क्यूँ न हूँ शश्दर जो माँगो पाँच दो पड़ते हैं ख़्वाह-मख़ाह तिरी ग़ज़ल जवश्त हो 'एहसाँ' तो वाह-वाह न कर कहेगी ख़ल्क़ कि वाए है वाह-वाह तिरी