सितम तीर-ए-निगाह-ए-दिलरुबा था हमारे हक़ में पैग़ाम-ए-क़ज़ा था हुआ अच्छा कि वो घर से न निकले किसे मालूम किस के दिल में क्या था मुझे वो याद करते हैं ये कह कर ख़ुदा बख़्शे निहायत बा-वफ़ा था उम्मीद-ए-वस्ल की हालत न पूछो फ़क़त इक आसरा ही आसरा था बहुत अच्छा हुआ वो ले गए दिल बड़ा ज़िद्दी निहायत बेवफ़ा था नहीं मालूम उस कम-सिन को ये भी हमारे दिल में क्या है और क्या था न पूछो जल्वा-गाह-ए-नाज़ का जमाल हर इक महव-ए-जमाल-ए-दिलरुबा था सुना है मय-कशी करने लगा 'हिज्र' वो मर्द-ए-बा-ख़ुदा तो पारसा था