शब-ए-फ़िराक़ कुछ ऐसा ख़याल-ए-यार रहा कि रात भर दिल-ए-ग़म-दीदा बे-क़रार रहा कहेगी हश्र के दिन उस की रहमत-ए-बे-हद कि बे-गुनाह से अच्छा गुनाह-गार रहा तिरा ख़याल भी किस दर्जा शोख़ है ऐ शोख़ कि जितनी देर रहा दिल में बे-क़रार रहा शराब-ए-इश्क़ फ़क़त इक ज़रा सी चक्खी थी बड़ा सुरूर घुटा मुद्दतों ख़ुमार रहा उन्हें ग़रज़ उन्हें मतलब वो हाल क्यूँ पूछें बला से उन की अगर कोई बे-क़रार रहा तुम्हें कभी न कभी मर के भी दिखा दूँगा जो ज़िंदगी ने वफ़ा की जो बरक़रार रहा अदाएँ देख चुके आईने में आप अपनी बताइए तो सही दिल पर इख़्तियार रहा शब-ए-विसाल बड़े लुत्फ़ से कटी ऐ 'हिज्र' तमाम रात किसी के गले का हार रहा