सितम-ए-ना-रवा को रोते हैं चर्ख़ तेरी जफ़ा को रोते हैं ख़ून रुलवा रही है याद-ए-वफ़ा इक सरापा-वफ़ा को रोते हैं इस तरह आई वक़्त से पहले आने वाली क़ज़ा को रोते हैं अब ये उस तक पहुँच नहीं सकता नाला-ए-ना-रसा को रोते हैं बह गया आँख से लहू हो कर दिल-ए-दर्द-आश्ना को रोते हैं जान ले कर गया वो आख़िर-ए-कार मरज़-ए-ला-दवा को रोते हैं जाने वाले की ये निशानी है देख कर नक़्श-ए-पा को रोते हैं दर्द सा दर्द है भरा उस में टूटे दिल की सदा को रोते हैं रोते जो आए थे रुला के गए इब्तिदा इंतिहा को रोते हैं रंग-ओ-बू अब कहाँ वो गुल ही नहीं इस चमन की हवा को रोते हैं है फ़ज़ा-ए-चमन ग़ुबार-आलूद हम मुकद्दर फ़ज़ा को रोते हैं ख़ाक में मिलने को है सब का हुस्न गुल-ए-रंगीं क़बा को रोते हैं मेहंदी पिस कर लहू रुलाती है पिसने वाली हिना को रोते हैं नफ़स-ए-सर्द ये बनी भी तो क्या मौज-ए-बाद-ए-सबा को रोते हैं बाग़-ए-आलम में इस तरह बे-दीद नर्गिस-ए-नीम-वा को रोते हैं छा गई कैसी तीरगी उन पर मेहर-ओ-मह की ज़िया को रोते हैं काम आया न ये किसी के भी ख़िज़्र आब-ए-बक़ा को रोते हैं चुप हैं यूँ जैसे इन में जान नहीं लब-ए-मोजिज़-नुमा को रोते हैं अब सू-ए-आसमाँ नहीं उठता अपने दस्त-ए-दुआ को रोते हैं जान को ले के साथ जाना था इस दिल-ए-मुब्तला को रोते हैं दे गया दाग़-ए-ग़म ये कौन 'रियाज़' हम ग़म-ए-देर-पा को रोते हैं