सितम-ईजाद रहोगे सितम-ईजाद रहे इस में अब शाद रहे या कोई नाशाद रहे आप ने अहद किया है मिरी ग़म-ख़्वारी का अब इजाज़त हो तो ये अहद मुझे याद रहे गर मिरी तौबा को मक़्बूल शिकस्त-ए-तौबा मेरी तदबीर में तक़दीर की उफ़्ताद रहे क़ैद-ए-हस्ती से बहुत तुम ने किए हैं आज़ाद कोई इस क़ैद-ए-मोहब्बत की भी मीआद रहे वो ख़ुदाई हो तो हो शान-ए-तजल्ली तो नहीं जिस तजल्ली में निगाहों को ख़ुदा याद रहे ज़ुल्म है तुझ से ब-तक़रीब-ए-तकल्लुफ़ मंसूब वर्ना तक़दीर-ए-वफ़ा ये है कि बर्बाद रहे दिल-ए-आबाद का 'फ़ानी' कोई मफ़्हूम नहीं हाँ मगर जिस में कोई हसरत-ए-बर्बाद रहे