सितम-ज़दा कई बशर क़दम क़दम पे थे शिकस्ता दिल शिकस्ता घर क़दम क़दम पे थे मिले हैं रहज़नों की सफ़ में वो भी आख़िरश शरीक-ए-रह जो राहबर क़दम क़दम पे थे हुआ गुज़र हमारा कैसे शहर-ए-इल्म में कि नुक्ता-दाँ ओ दीदा-वर क़दम क़दम पे थे है क्या अजब कि ख़्वाब था वो मंज़र-ए-हसीं हज़ारों लोग ख़ुश-नज़र क़दम क़दम पे थे थे जौक़ जौक़ आस-पास कर्गस ओ उक़ाब परिंद कुछ शिकस्ता-पर क़दम क़दम पे थे हमारा 'अकबर' एक ही ख़ुदा था और बस! निसार बुत-परस्त गो सनम सनम पे थे