सितारा आँख में दिल में गुलाब क्या रखना कि ढलती उम्र में रंग-ए-शबाब क्या रखना जो रेगज़ार-ए-बदन में ग़ुबार उड़ता हो तो चश्म-ए-ख़ाक-ए-रसीदा में ख़्वाब क्या रखना सफ़र नसीब ही ठहरा जो दश्त-ए-ग़ुर्बत का तो फिर गुमाँ में फ़रेब-ए-सहाब क्या रखना जो डूब जाना है इक दिन जज़ीरा-ए-दिल भी तो कोई नक़्श सर-ए-सत्ह-ए-आब क्या रखना उलट ही देना है आख़िर पियाला-ए-जाँ भी हवा के दोश पे तश्त-ए-हबाब क्या रखना बस इतना याद है इक भूल सी हुई थी कहीं अब इस से बढ़ के दुखों का हिसाब क्या रखना