सितारे की सजल झिलमिल के रेशम से बनी मैं हुजूम-ए-ख़ल्क़ दो रूया खड़ा है और चली मैं ये जो सहराओं के अबआ'द आँखों में खुले हैं बगूलों को भली लगने लगी हूँ हिज्रती मैं मैं सोती रह गई बेदार लम्हे के उमुक़ में कोई ख़्वाबीदा साअ'त थी कि जिस में जागती मैं कई सहरा थे मेरी प्यास की पहनाइयों में किसी दरिया के तट तक आ के फिर वापस मुड़ी मैं ये तुम जो केसरी नीला ब-नफ़सी ढूँडते हो तुम्हें ये रंग मिल सकते हैं पर मेरी हँसी मैं किसी रहरव में इतना दम नहीं आए धम को पिछल पीरी कोई फिरती है ख़्वाहिश की गली में ये ले कारी ये गिर्दाब-ए-ग़िना ये अहमरीं सुर किसी के होंट घुल कर आ रहे हैं बाँसुरी मैं ज़रूरी था कि दिल के पेच-ओ-ख़म पर आँख पड़ती पता तेरा भला लोगों से कैसे पूछती मैं खनक उठती है रह रह कर मिरी आवाज़ 'महनाज़' बहुत नम-साज़ मिट्टी गूँध कर शायद बनी मैं