तसव्वुर में मिरे ऐसे कोई चेहरा निकलता है

तसव्वुर में मिरे ऐसे कोई चेहरा निकलता है
कि सूखी शाख़ पर जैसे हरा पत्ता निकलता है

फ़रिश्ते घर की चौखट पर खड़े रहते हैं सफ़ बाँधे
कि जब स्कूल को घर से कोई बच्चा निकलता है

ज़मीं भी जैसे मेरा इम्तिहाँ लेने के दर पय है
जिधर पाँव बढ़ाता हूँ उधर सहरा निकलता है

हक़ीक़त उन की जो भी हो अक़ीदा है यही अपना
इन्हीं ख़्वाबों से मंज़िल के लिए रस्ता निकलता है

सफ़र सूरज का मुझ को जब कभी दरपेश आ जाए
तो मेरा हम-सफ़र बन कर मिरा साया निकलता है

करेगी मन्फ़अत हासिल इसी से फ़स्ल-ए-मुस्तक़बिल
हमारी ज़ात से जो ये सुख़न दरिया निकलता है

मुझे मेरी नज़र में मो'तबर करता है वो पैहम
मिरा दुश्मन मिरे हक़ में सदा सच्चा निकलता है

हमारी प्यास सच्ची है हम इस्माईल वाले हैं
जहाँ एड़ी रगड़ दें हम वहीं दरिया निकलता है

ज़लील-ओ-ख़्वार होते हैं 'उबैद'-ए-बा-ख़बर लोगो
मोहब्बत का मगर सर से कहाँ सौदा निकलता है


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