सितारों पर कमंदें डालता हूँ मैं अपनी पस्तियों से आश्ना हूँ मैं यख़-बस्ता हवाओं में घिरा हूँ मगर अन्दर से तो दहका हुआ हूँ तिरे हर रंग से हर रुख़ से वाक़िफ़ तुझे तुझ से ज़ियादा जानता हूँ मुझे आवाज़ देता है समुंदर मैं साहिल से तमाशा देखता हूँ पड़ा हूँ रहगुज़र में संग-सूरत मैं अपने ही मुक़द्दर का लिखा हूँ क़दम उठते नहीं बार-ए-अलम से मगर मैं और चलना चाहता हूँ