स्याह रात के माथे पे ख़ाक मलता हुआ अजीब चाँद है दिखता नहीं है ढलता हुआ मिरा भी दुख तो है आनिस तुम्हारे दुख का रफ़ीक़ सो आ रहा हूँ उसी रास्ते पे चलता हुआ ये देखिए कि हवाओं पे कब धरा जाऊँ चराग़ से तो निकाला गया हूँ जलता हुआ उसे भी याद तो होगी वो रेल की सीटी हमें तो याद रहेगा वो हाथ मलता हुआ