सियाहियों का नगर रौशनी से अट जाए बहुत तवील है या-रब ये रात कट जाए ज़मीं का रिज़्क़ हूँ लेकिन नज़र फ़लक पर है कहो फ़लक से मिरे रास्ते से हट जाए तमाम रात सितारा यही पुकारता था हवा के साथ चलो बादबाँ न फट जाए मिरी ग़ज़ल का है 'अनवर-सदीद' ये हासिल मता-ए-दर्द मिरे दोस्तों में बट जाए