अजब तू ने जल्वा दिखाया मुझे कि आलम में फिर कुछ न भाया मुझे करूँ क्या बयाँ मैं ये एहसान-ए-इश्क़ कि क़तरे से दरिया बनाया मुझे फ़िदा हूँ मैं उस नाज़-ए-जाँ-बख़्श पर कि जूँ जूँ मुआ में जिलाया मुझे तिरी ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ ने ऐ रश्क-ए-गुल हज़ारों बला में फँसाया मुझे रुलाया कभूँ मुझ को मानिंद-ए-अब्र कभूँ बर्क़-आसा हँसाया मुझे जो अपने तईं मैं ने देखा बग़ौर सरापा नज़र तू ही आया मुझे मैं हूँ शाह-ए-ख़ादिम पर 'आसिम' फ़िदा कि जूँ जूँ मैं बिगड़ा बनाया मुझे