सियासी राह में अंदेशा-ए-लग़्ज़िश बहुत है तुझे बर्बाद करने को तिरी ख़्वाहिश बहुत है अदा-कारी रिया-कारी फ़रेब-ओ-मक्र सीखो सियासत में इन्हीं औसाफ़ से पुर्सिश बहुत है ये दिल्ली है दलालों की यहाँ सब काम होंगे तुम्हारी जेब हो भारी तो आसाइश बहुत है कभी जो पूछ लेते हो हमारा हाल हम से तुम्हारे दिल में ये थोड़ी सी गुंजाइश बहुत है कहूँ कुछ शे'र ऐसे जो उतर जाएँ दिलों में मिरे मौला मुझे इतनी तिरी बख़्शिश बहुत है