सोच कर मिल ज़रा तवक़्क़ुफ़ कर यूँ न हर एक से तआ'रुफ़ कर ज़िंदगी ख़र्च करने वाले सुन मौत पर भी तो कुछ तसर्रुफ़ कर दीन-ए-इंसानियत के जौहर से ऐ ख़ुदा हम को भी मुशर्रफ़ कर हद में रह कर ही बे-तकल्लुफ़ हो हो न महसूस यूँ तकल्लुफ़ कर झूट गो कामरान होता है अपने सच पर न अब तअस्सुफ़ कर छुप के जो बेचते हैं मिल्लत को ऐसे लोगों पे खुल के तुफ़ तुफ़ कर सारी दुनिया बदल रही है 'असद' अपना तब्दील अब तआ'रुफ़ कर