सोच निखरी है आगही चुप है देख कितनी हरी-भरी चुप है दर्द फैला है कहकशाओं में सर सिसकते हैं रागनी चुप है ऐसे गूँजी है तीरगी शब की सब सितारों की रौशनी चुप है मेरे होंटों पे सुर्ख़ नग़्मे हैं तेरे होंटों पे सुरमई चुप है इक तहय्युर ने उस को सींचा है मेरे लब पर उगी हुई चुप है एक चुप है जहान में फैली शहर वीराँ गली गली चुप है आबला-पा हैं दश्त में दोनों क़ैस रोता है और 'सफ़ी' चुप है