सोचता हूँ मैं कि कुछ इस तरह रोना चाहिए अपने अश्कों से तिरा दामन भिगोना चाहिए ज़िंदगी की राह पर कैसे अकेले हम चलें इस सफ़र में हम-सफ़र कोई तो होना चाहिए दिल बहुत छोटा है मेरा और जहाँ में ग़म बहुत मैं परेशाँ हूँ किसे कैसे समोना चाहिए बच्चा रोता है मगर रोता है वो तक़दीर पर माँ समझती है कि मुन्ने को खिलौना चाहिए अजनबी बिस्तर ये बोला रात के पिछले पहर ऐ 'सबीह'-ए-बे-वतन अब तुझ को सोना चाहिए