सोचता हूँ कभी हूरों का ख़याल अच्छा है कभी कहता हूँ कि उस बुत का जमाल अच्छा है मुझ से कहते हैं कहो 'इश्क़ में हाल अच्छा है छेड़ अच्छी है ये अंदाज़-ए-सवाल अच्छा है न अदाएँ तिरी अच्छी न जमाल अच्छा है अस्ल में चाहने वाले का ख़याल अच्छा है देख कर शक्ल वो आईने में अपनी बोले कौन कहता है कि हूरों का जमाल अच्छा है जो हुनर काम न आए तो हुनर फिर कैसा काम जो वक़्त पर आए वो कमाल अच्छा है वो जवानी वो अदा और वो क़द्द-ए-मौज़ूँ देख कर बोल उठा दिल भी कि माल अच्छा है हिज्र में दिल ने कहा कूचा-ए-जानाँ में चलो शौक़ कमबख़्त ये बोला कि ख़याल अच्छा है यूँ तो 'आशिक़ के लिए दोनों वबाल-ए-जाँ हैं हिज्र से फिर भी हर इक तरह विसाल अच्छा है आप जब होते नहीं इस का तो फिर ज़िक्र ही क्या आप जब सामने बैठे हैं तो हाल अच्छा है जल्वा-अफ़रोज़ हों जब आप नज़र के आगे वो महीना वो घड़ी और वो साल अच्छा है उस ने जब प्यार से पूछा कि कहो कैसे हो मुँह से बे-साख़्ता ये निकला कि हाल अच्छा है लुत्फ़ से ख़ाली नहीं जौर भी उन का 'हाजिर' जो हसीनों से मिला है वो मलाल अच्छा है