वाक़िफ़ नहीं है कोई हसीनों की चाल से दिल का शिकार करते हैं ज़ुल्फ़ों के जाल से नासेह ख़ुदा के वास्ते ज़िक्र-ए-सनम न कर होता है रंज और किसी के ख़याल से आएगा बाज़ तू न 'अदू से मिले बग़ैर ज़ाहिर ये हो रहा है तिरी चाल-ढाल से उस के लिए जहान में लुत्फ़-ए-हयात क्या मायूस हो गया हो जो तेरे विसाल से अब राज़ हम से खिंचने का मा'लूम हो गया करते हो ख़ुश 'अदू को हमारे मलाल से ये भी है इक सलीक़ा-ए-इंकार देखना चीं-बर-जबीं वो होते हैं मेरे सवाल से अच्छा ये 'इश्क़ अच्छी ये दिल-बस्तगी हुई आया हूँ तंग रोज़ के रंज-ओ-मलाल से यूँ तो बशर के वास्ते इक्सीर है शराब पीना है इस का शर्त मगर ए'तिदाल से दिल में अगर वो ख़ुश हों तो हैरत का है मक़ाम ज़ाहिर में जो ख़फ़ा हैं मिरी ‘अर्ज़-ए-हाल से क्या क्या गुज़र चुकी है मिरे दिल पे हिज्र में वाक़िफ़ नहीं हैं आप अभी मेरे हाल से 'हाजिर' के मो'तक़िद हों ये हम को यक़ीन है जा कर मिलें गर आप भी उस बा-कमाल से