इक सुकूत-ए-बेकराँ शो'ला-बयानी से अलग एक दुनिया है मिरे शहर-ए-मआनी से अलग मौज ख़ुद साकित खड़ी थी या कि था ये दाम-ए-आब क्या था वो ठहराव सा पैहम रवानी से अलग वो बयाँ आहंग जिस का दिल को छलनी कर गया गर्म-गुफ़्तारी से हट कर बे-ज़बानी से अलग सारी ख़ुशियाँ झूट हैं हर मुस्कुराहट है फ़रेब आओ इक दुनिया बसाएँ शादमानी से अलग मैं भी अपनी ज़ात के हैबत-कदे में हूँ असीर वो भी रूह-ए-मुज़्तरिब क़ैद-ए-मकानी से अलग रब्त-ए-बाहम पर न था हर्फ़-ए-तसलसुल का मुराद या'नी हर किरदार था दिल की कहानी से अलग और कितना रोइएगा याद कर 'आज़ाद' को एक दिन होना ही था इस दार-ए-फ़ानी से अलग