सोज़-परवर निगाह रखते हैं हम नज़र में भी आह रखते हैं इस हुजूम-ए-तजल्लियात में हम हसरत-ए-यक-निगाह रखते हैं ये तअ'ल्लुक़ जहाँ से काफ़ी है आप से रस्म-ओ-राह रखते हैं बख़्श देगा वो बख़्शने वाला बस ये उज़्र-ए-गुनाह रखते हैं हम हिजाबात से नहीं मायूस जल्वा पेश-ए-निगाह रखते हैं ग़म वसीला है और तू मक़्सूद हम ये मंज़िल ये राह रखते हैं एक जल्वा दिखा नहीं सकते वो जो इक जल्वा-गाह रखते हैं कोई आलम हो हज़रत-ए-'ताबिश' कज हमेशा कुलाह रखते हैं