सोने वालों को कोई ख़्वाब दिखाने से रहा मैं तह-ए-ख़ाक तो अब ख़ाक उड़ाने से रहा कोई दरवाज़ा न हाइल कोई दहलीज़ रही इश्क़ सहरा में रहा और ठिकाने से रहा डूब जाएँ तो किनारे पे पहुँच सकते हैं अब समुंदर तो हमें पार लगाने से रहा उन दियों ही से किसी तौर गुज़ारा कर लो अब मैं कमरे में सितारों को तो लाने से रहा अपने हाथों ही शिकार अपना मैं कर लूँ न 'मुनीर' और कुछ देर अगर दूर निशाने से रहा