सोज़-ए-दरूँ से जल-बुझो लेकिन धुआँ न हो है दर्द-ए-दिल की शर्त कि लब पर फ़ुग़ाँ न हो फिर हो रहा है शोर-ए-सला-ए-नबर्द-ए-इश्क़ हाँ ऐ दहान-ए-ज़ख़्म जवाब अल-अमाँ न हो बाज़ार-ए-जाँ-फ़रोश में सौदा न हो ये क्या गाहक मिले तो जिंस तो ये भी गराँ न हो इस दर्द-ए-ला-जवाब की क्यूँकर करूँ दवा वो हाल-ए-दिल-नशीं भी तो मुझ से बयाँ न हो क्या फ़ाएदा गर उस ने छुपाया भी दर्द-ए-दिल ये काम जब बने कि मिज़ा ख़ूँ-चकाँ न हो क्या कीजे चुन के माएदा-ए-दिल को लख़्त लख़्त तेरा ही तीर सीने में जब मेहमाँ न हो ख़ौफ़-ए-रक़ीब का तो ये 'आलम और उस पे इश्क़ सब चाहते हैं चाह का उन पर गुमाँ न हो है वस्ल-ए-यार की भी तमन्ना का हौसला डर ये भी है कि तब्अ'-ए-अदू पर गिराँ न हो पहलू से दिल को ले के वो कहते हैं नाज़ से क्या आएँ घर में आप ही जब मेज़बाँ न हो सुनते ही जिस के ख़ल्क़ से कोहराम मच गया 'जौहर' वो तेरी ही तो कहीं दास्ताँ न हो