सोज़-ए-दिल सोज़-ए-जिगर सोज़-ए-अलम पाया है जो भी पाया है तिरे इश्क़ में कम पाया है सर झुका जाता है हर गाम पे सज्दे के लिए हर जगह जैसे तिरा नक़्श-ए-क़दम पाया है जितना जी चाहे मिरे हाल पे दुनिया हँस ले मैं ने हिस्से में फ़क़त रंज-ओ-अलम पाया है फूल हँसते हैं तो रोती है चमन में शबनम इक ने पाई है ख़ुशी एक ने ग़म पाया है खुल गया राज़ तिरे दर्द-ए-निहाँ का 'पैकर' आज आँखों में तिरी अश्क-ए-अलम पाया है