तिरी नज़र में जो ये आब-ओ-ताब बाक़ी है ज़रूर कोई तो ख़ाना-ख़राब बाक़ी है अभी अज़ान के होने में देर है लोगो अभी तो जाम में थोड़ी शराब बाक़ी है ये ज़िंदगी का नविश्ता अजल के हाथ आया गुनाह ख़त्म हुए अब अज़ाब बाक़ी है लहू में कोई हरारत नहीं रही उन के ज़बाँ पे ना'रा-ए-सद-इंक़लाब बाक़ी है अभी से आप ने क्यों उँगलियाँ जला डालीं अभी तो ख़ून-ए-जिगर का हिसाब बाक़ी है ये मक़बरा है बस अल्फ़ाज़ और मआ'नी का किताब-ख़्वाँ तो नहीं है किताब बाक़ी है अभी तो चाँद भी बाक़ी है उस की दुनिया भी ये कौन कहता है बस आफ़्ताब बाक़ी है नज़र हर एक की बे-पर्दा हो गई जैसे दिलों में आज भी लेकिन हिजाब बाक़ी है न तिश्नगी का मुदावा उसे समझ 'पैकर' तिरी नज़र में जो दश्त-ए-सराब बाक़ी है