सुब्ह करते हैं शाम करते हैं हम मोहब्बत को आम करते हैं कोई मज़हब हो ज़ात हो कोई सब का हम एहतिराम करते हैं फ़िक्र-ए-उक़्बा हमें भी है वाइज़ ज़िक्र-ए-रब सुब्ह-ओ-शाम करते हैं चश्म-ए-नम कम नहीं क़यामत से आब-ओ-आतिश क़ियाम करते हैं इल्म की रौशनी जहाँ भी मिले हम वहीं पर क़ियाम करते हैं दिल 'शरर' मस्जिद-ओ-शिवाला है दिल का हम एहतिराम करते हैं