सुब्ह मिट्टी है शाम है मिट्टी या'नी अपना मक़ाम है मिट्टी किस जगह पर करूँ बसेरा मैं जो भी है वो क़याम है मिट्टी दाइमी कुछ नहीं है रहने को जिस को देखो दवाम है मिट्टी अब तो आ और तू सँभाल उसे देख ले ये ग़ुलाम है मिट्टी लग़्ज़िश-ए-ज़िंदगी से इल्म हुआ मौत का ही पयाम है मिट्टी मैं ने दफ़ना दिया है ख़्वाहिश को क्यूँकि ख़्वाहिश का नाम है मिट्टी मिट्टी है बे-ज़बाँ मगर 'तन्हा' बे-ज़बाँ का कलाम है मिट्टी