सुब्ह-ए-नौ हम तो तिरे साथ नुमायाँ होंगे और होंगे जो हलाक-ए-शब-ए-हिज्राँ होंगे सदमा-ए-ज़ीस्त के शिकवे न कर ऐ जान-ए-'रईस' ब-ख़ुदा ये न तिरे दर्द का दरमाँ होंगे मेरी वहशत में अभी और तरक़्क़ी होगी तेरे गेसू तो अभी और परेशाँ होंगे आज़माएगा बहर-हाल हमें जब्र-ए-हयात हम अभी और असीर-ए-ग़म-ए-दौराँ होंगे आशिक़ी और मराहिल से अभी गुज़रेगी इम्तिहाँ और मोहब्बत के मिरी जाँ होंगे क़ल्ब-ए-पाकीज़ा-निहाद ओ दिल-ए-साफ़ी दे कर आईना हम को बनाया है तो हैराँ होंगे सदक़ा-ए-तीरगी-ए-शब से गिला-संज न हो कि नए चाँद इसी शब से फ़िरोज़ाँ होंगे आज है जब्र-ओ-तशद्दुद की हुकूमत हम पर कल हमीं बेख़-कुन-ए-क़ैसर-ओ-ख़ाक़ाँ होंगे वो कि औहाम ओ ख़ुराफ़ात के हैं सैद-ए-ज़बूँ आख़िर इस दाम-ए-ग़ुलामी से गुरेज़ाँ होंगे सिर्फ़ तारीख़ की रफ़्तार बदल जाएगी नई तारीख़ के वारिस यही इंसाँ होंगे