वो कुछ इस तरह चाहता है मुझे अपने जैसा बना दिया है मुझे इस तरह उस ने ख़त लिखा है मुझे जैसे दिल से भुला दिया है मुझे गर नहीं चाहता तू पिछले पहर क्यूँ दुआओं में माँगता है मुझे जिस पे फलते नहीं दुआ के पेड़ उस ज़मीं से पुकारता है मुझे तख़लिए में न जाने कितनी बार लिखते लिखते हटा चुका है मुझे लम्हा लम्हा उगाने की धुन में क़तरा क़तरा डुबा रहा है मुझे वास्ता दे के मौसमों का 'निज़ाम' वो दरख़्तों से माँगता है मुझे