सुख़न-आबाद की तन्हाई में जा रहने का हम को ढब आता है पादाश-ए-हुनर सहने का आप की चश्म में कोई क़मर आए तो आए रश्क-ए-ख़ुर्शीद हूँ सो मैं तो नहीं गहने का मिन्नत-ए-लफ़्ज़-ओ-ज़बाँ क्यूँकि उठाई जाए चश्म-ए-ख़ुश-कार को मालूम है ढब कहने का एक जाए तो चली आए दिगर मौज-ए-कमाल दीदनी बस-कि है नज़्ज़ारा मिरे बहने का बस में हर ना-कस-ओ-कस के नहीं मेरी ता'मीर कुछ ज़ियादा न हो नुक़सान मिरे ढहने का