जुज़ दस्त-ए-लुत्फ़ कुछ न चाहें सहमी हुई मुल्तजी निगाहें गुल-दान में ताज़ा फूल देखे दो चंद हुईं हमारी आहें हैं ख़ल्वत-ए-बे-कसी में गिर्यां सुन कर तहज़ीब की कराहें चलना था बिछड़ के भी बहुत कुछ तुम कट गए पर कटी न राहें पत्ते थे बिछड़ के मौत ही थी जाँ देने पे लोग क्यों सराहें हम भूल गए हैं चश्म-बस्तन देखी थीं तिरी कुशादा बाँहें सह ख़ंजर-ए-ख़ंदा तीर-ए-ता'ना अपनी अक़दार से निबाहें