सुख़न में रंग तुम्हारे ख़याल ही के तो हैं ये सब करिश्मे हवा-ए-विसाल ही के तो हैं कहा था तुम ने कि लाता है कौन इश्क़ की ताब सो हम जवाब तुम्हारे सवाल ही के तो हैं ज़रा सी बात है दिल में अगर बयाँ हो जाए तमाम मसअले इज़हार-ए-हाल ही के तो हैं यहाँ भी उस के सिवा और क्या नसीब हमें ख़ुतन में रह के भी चश्म-ए-ग़ज़ाल ही के तो हैं जसारत-ए-सुख़न-ए-शाइराँ से डरना किया ग़रीब मश्ग़ला-ए-कील-ओ-क़ाल ही के तो हैं हवा की ज़द पे हमारा सफ़र है कितनी देर चराग़ हम किसी शाम-ए-ज़वाल ही के तो हैं