सुख़नवरी का ये फ़न जो निभाना सीख गया मैं अपने दर्द को दरमाँ बनाना सीख गया हज़ार तरह सिखाया गया मगर अफ़सोस समझ भी पाया न वो और ज़माना सीख गया हर इम्तिहान में वो कामयाब होता है ख़ुद अपने आप को जो आज़माना सीख गया ये बार बार का इसरार मुझ को ले डूबा वो तंग आ के बहाने बनाना सीख गया कहाँ उभरना कहाँ डूबना है 'औज' मुझे मैं बहर-ए-इश्क़ में ग़ोते लगाना सीख गया