सुकूँ नहीं है मोहब्बत में बात बात के बाद वो किस लिबास में आते हैं इल्तिफ़ात के बाद न रुख़ पे ग़ाज़ा-ए-गुलगूँ न माँग में तारे जमाल-ए-सादगी-ए-हुस्न है सिफ़ात के बाद अजब नहीं मुझे मिल जाए मुंसिफ़-ए-मंसूर लबों तक आ के रुकी है उस एक बात के बाद फ़रोग़-ए-जाम से इक सुब्ह-ए-मुस्तक़िल माँगो सहर मिले न अगर मय-कदे में रात के बाद कली को देख के सरशार ख़्वाब क्या गुज़री नसीम-ए-सुब्ह जगाने जो आई रात के बाद दर-ए-शबिस्ताँ पे 'मानी' किसी ने दस्तक दी हयात ले के फ़राएज़ वो आई रात के बाद