सुकून-ए-दिल को मिरा इज़्तिराब क्या जाने शिकस्त-ए-ख़्वाब को ताबीर-ए-ख़्वाब क्या जाने वो मुन्कशिफ़ है अभी सिर्फ़ दश्त-ओ-सहरा पर जो कैफ़-ए-तिश्ना-लबी है वो आब क्या जाने नशात-ए-सज्दा से जिस को ग़रज़ है वो बंदा झुका दे सर तो अज़ाब-ओ-सवाब क्या जाने वो ज़िंदगी से अदा सीखता है जीने की तमाम चेहरे जो पढ़ ले किताब किया जाने असीर-ए-शौक़ तो इज़्न-ए-सफ़र का तालिब है मक़ाम-ए-ऐश को ख़ाना-ख़राब क्या जाने