सुकून-ए-क़ल्ब है मुझ पर हराम वज्द में हूँ भुला चुका हूँ ख़ुद अपना भी नाम वज्द में हूँ मैं हो चुका हूँ रुमूज़-ए-हयात से वाक़िफ़ अब अपने काम से रखता हूँ काम वज्द में हूँ मोहब्बतों में बहुत ख़र्च कर चुका ख़ुद को हूँ जिस क़दर भी मैं बाक़ी तमाम वज्द में हूँ तलाश-ए-ज़ात में गुम हो गई है मेरी नज़र नहीं किसी से दुआ-ओ-सलाम वज्द में हूँ नहीं है अपनी ख़बर क्या किसी की फ़िक्र करूँ सफीर-ए-इश्क़ हूँ मैं सुब्ह-ओ-शाम वज्द में हूँ बहुत तवील है मेरा सफ़र मगर फिर भी थका नहीं हूँ मैं हर एक गाम वज्द में हूँ