रंग जो भी मिरे ख़याल के हैं सब उसी पैकर-ए-जमाल के हैं इश्क़ है अपनी आख़िरी हद में और हम अब भी बीस साल के हैं मेहनतें हौसले वफ़ादारी मुझ में कुछ ऐब तो कमाल के हैं फ़न अगर बे-नज़ीर है मेरा रतजगे भी तो फिर मिसाल के हैं मेरी नींदें हराम हैं लेकिन मेरे अशआ'र सब हलाल के हैं हुस्न है कम-सिनी के आलम में ये शब-ओ-रोज़ देख-भाल के हैं आज भी लड़कियों की महफ़िल में तज़्किरे मेरे ख़द्द-ओ-ख़ाल के हैं हुस्न हो इश्क़ हो मोहब्बत हो सारे आसार ही ज़वाल के हैं