सुकूत-ए-अस्र में गूँजी हुई अज़ान हूँ मैं बहुत से गिरती नशीनों के दरमियान हूँ मैं अदब की कर्ब-ओ-बला कूफ़ा-ए-सदा है गवाह हवा-ए-शाम का लिखा हुआ बयान हूँ मैं वो ख़ेमा-गाह-ए-मोहब्बत तो जल गई कब की और उस की राख में मुद्दत से नीम-जान हूँ मैं फ़ुरात-ए-तिश्नगी-ए-शौक़ रू-ब-रू तेरे जिसे जलाया गया था वही मकान हूँ मैं वो टूटा नेज़ा वो बे-चादरी वो शाम-ए-अलम कभी जो ख़त्म न होगी वो दास्तान हूँ मैं गुलू-ए-तिश्ना-लबी देख किस सलीक़े से कशीदा तीर सँभाले हुए कमान हूँ मैं शरीअ'त-ए-दिल-ओ-दुनिया उठाए फिरती रही वो कह रहा है मगर फिर भी ना-तवान हूँ मैं ये बाम-ओ-दर को सजाया गया है मेरे लिए नज़ारगी तिरी ख़ातिर लहूलुहान हूँ मैं