तमाम उम्र-ए-रवाँ का मआल हैरत है जवाब जिस का नहीं वो सवाल हैरत है दुकान-ए-चश्म यहाँ बे-मिसाल हैरत है इस आइने का सरासर कमाल हैरत है ये ज़िंदगी तो तिरे साथ साथ ख़त्म हुई जो मुझ में बाक़ी है वो ला-ज़वाल हैरत है वो ख़्वाब ऐसे थे ता'बीर उन की थी ही नहीं रमीदा हिज्र-ए-गुरेज़ाँ विसाल हैरत है हुई तिलिस्म-ज़दा जब ये आइने ने कहा यहाँ तो सारे का सारा जमाल हैरत है अदम वजूद-ए-अदम उफ़ ये सिलसिले कैसे मैं लुट गई हूँ मगर माला-माल हैरत है ये काएनात है हैरान अपने होने पर क़दम क़दम पे यहाँ महव-ए-हाल हैरत है