सुलगती शब का पुर-असरार मंज़र जागता होगा मकीं ख़्वाबों में गुम होंगे मगर घर जागता होगा जो मुमकिन हो तो पथरीली चटानें तोड़ कर देखो मिरे अंदर बड़ा गहरा समंदर जागता होगा किया पथराव जिन हाथों ने मुझ पर सो चुके होंगे मगर इक एक ख़ूँ-आलूदा पत्थर जागता होगा सिसकते शहर में कुछ ऊँघती परछाइयाँ होंगी मु’अल्लक़ है ख़लाओं में जो ख़ंजर जागता होगा किसे तुम ढूँडते 'हामिद' हो इन वीरान सड़कों पर चलो रौशन महल की सम्त 'अख़्तर' जागता होगा