सुन! हिज्र और विसाल का जादू कहाँ गया मैं तो कहीं नहीं था मगर तू कहाँ गया जब ख़ेमा-ए-ख़याल में तस्वीर है वही वो दश्त-ए-ना-मुराद वो आहू कहाँ गया बिस्तर पे गिर रही है सियह आसमाँ से राख वो चाँदनी कहाँ है वो मह-रू कहाँ गया जिस के बग़ैर जी नहीं सकते थे जा चुका पर दिल से दर्द आँख से आँसू कहाँ गया फिर ख़ाक उड़ रही है मकान-ए-वजूद में ऐ जान-ए-बे-क़रार वो दिल-जू कहाँ गया