सुना है प्यास की तकमील होने वाली है ये रात रेत में तब्दील होने वाली है मैं अपनी ज़ात में तहलील होने वाला हूँ धुएँ से जिस्म की तश्कील होने वाली है फ़ज़ा में चुप की स्याही घुली है आज की रात लहू से हुक्म की तामील होने वाली है यहाँ पे ख़ाक उड़ेगी तमाम रात सो अब इस इख़्तिसार की तफ़्सील होने वाली है हैं कुश्तगान-ए-सदा आख़िरी किनारे पर ऐ ख़ामुशी तिरी तर्सील होने वाली है